Monday, July 21, 2008

सारथी...



अंधेर भरे जीवन में जलाने
के लिए एक जोत लाया हू |
मायूसी भरी आखो के लिए
एक प्यारा -सा ख्वाब लाया हू |
निराशा पूर्ण जीवन के लिए
आशा के एक किरण लाया हू |
काली घनेरी अमावस्या की रात में
पूनम का चाँद लाया हू |
सूखे रेगिस्तान में आज
पानी की फुहार लाया हू |
आज मुसीबतों से भरे जीवन के लिए
समाधानों का भंडार लाया हू |
अशांत मन के लिए
शान्ति भरा अहसास लाया हू |
मै आज आपको आप मे
जल रही आग से परिचित कराने आया हू |
मै कोई और नही बल्कि आपके
ही दिल की धड़कन हू जो आज
आपके सामने आपका सारथी बनकर आया हू |


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6 comments:

Amit K Sagar said...

बहुत खुबसूरत. लिखते रहिए.
---
यहाँ भी पधारें;
उल्टा तीर

Guman singh said...

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता हैं
तेरे आगे चांद पुराना लगता हैं

तिरछे तिरछे तीर नजर के चलते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता हैं

आग का क्या हैं पल दो पल में लगती हैं
बुझते बुझते एक ज़माना लगता हैं

सच तो ये हैं फूल का दिल भी छल्ली हैं
हसता चेहरा एक बहाना लगता हैं

रश्मि प्रभा... said...

saarthi ka swaagat hai.......
bahut sundar

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

Prabhakar Pandey said...

बहुत ही बढ़िया लिखते हैं आप। सुंदरतम। ळिखते रहें।

ManPreet Kaur said...

very nice..
Please visit my blog..

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